जहाँ समाज का अपना राज है, समाज के लिए है, समाज से है
‘ग्राम स्वराज’ और उससे जुड़ी शब्दावली वहाँ नहीं मिलती. फिर भी पीढ़ियों से राज-समाज, आस्था-व्यवस्था के जिन तरीकों पर झारखंड के कई समाज चलते आ रहे हैं, उनमें इस विचार की बहुत पुरानी समझ है. समय ने करवट जरूर ली है. इसके मायने बदले. महत्त्व, मान्यताएँ, रीतियाँ, नीतियाँ, प्रणालियाँ बदलीं. गांधी ने कोशिश की कि …